वन संरक्षण कानून

हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार राज्य के मुख्य सचिवों और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासकों को अपनी न्यायिक सीमाओं में वन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए विशेषज्ञ समितियों का गठन करना होगा। 
यह आदेश 1996 में स्थापित एक दीर्घकालिक कानूनी प्रथानुसार आया है, जो वन की परिभाषा को व्यापक रूप से निर्धारित करता है और विभिन्न प्रकार की वन भूमि को इसमें शामिल करता हैं। 

क्या है वन संरक्षण कानून 

वन अधिनियम 1980 में वन संसाधनों की सुरक्षा और प्रबंधन के लिए लागू किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय का 1996 में लिया गया ऐतिहासिक निर्णय था। जिसमें सभी ऐसे क्षेत्र शामिल हैं जिन्हें वन के रूप में पहचाना गया है, चाहे उनकी स्वामित्व की स्थिति या वर्गीकरण कुछ भी हो। यह व्यापक व्याख्या पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने और देश भर में समग्र संरक्षण प्रयासों को सुनिश्चित करने के लिए है। 

न्यायालय ने दिए आदेश 

सर्वोच्च न्यायालय ने वन संरक्षण पर अपने रुख को फिर से दोहराया है। नवम्बर 2023 और फरवरी 2024 में, अदालत ने राज्यों से 1996 के निर्णय का पालन करने की आवश्यकता पर बल दिया। मार्च 2025 के आदेश में न्यायालय ने अधिकारियों के लिए व्यक्तिगत उत्तरदायित्व की चेतावनी दी है। 

विशेषज्ञ समितियों की भूमिका 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित विशेषज्ञ समितियां सभी वन क्षेत्र, जिसमें क्षतिग्रस्त और सफाया की गई भूमि भी शामिल हैं, की पहचान करेंगी। वे सरकारी और निजी स्वामित्व वाले पौधारोपण क्षेत्रों पर भी विचार करेंगी। यह व्यापक पहचान प्रक्रिया प्रभावी रूप से संरक्षण उपायों को लागू करने के लिए आवश्यक है। 

2023 वन अधिनियम में संशोधनों के प्रभाव 

2023 में वन अधिनियम में किए गए संशोधनों से चिंता उत्पन्न हुई है। इससे यह अंदेशा है कि इन संशोधनों के कारण "वन" की परिभाषा संकीर्ण हो सकती है, जिसके कारण कुछ क्षेत्रों को कानूनी सुरक्षा से बाहर किया जा सकता है। जिससे पारिस्थितिकीय असंतुलन हो सकता है। 
संकलित रिकॉर्ड राज्य और संघ राज्य क्षेत्र अपनी वन भूमि के संकलित रिकॉर्ड प्रस्तुत करने होंगे | यह आवश्यकता वन आवरण के विस्तार को समझने और संरक्षण रणनीतियों की योजना बनाने के लिए आवश्यक है। सही रिकॉर्ड परिवर्तन की निगरानी करने और संरक्षण कानूनों के पालन को सुनिश्चित करने में मदद करेंगे। 

भविष्य के कदम 

सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया है कि पहचान प्रक्रिया को समय पर पूरा किया जाए। रिपोर्टों को केंद्रीय सरकार को प्रस्तुत किया जाएगा, जो फिर उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत करेगी। यह प्रक्रिया जवाबदेही बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने के लिए है कि वन प्रबंधन कानूनी आवश्यकताओं के अनुरूप हो।